लेखनी कविता - अगर बदल न दिया - फ़िराक़ गोरखपुरी

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अगर बदल न दिया / फ़िराक़ गोरखपुरी अगर बदल न दिया आदमी ने दुनियाँ को,  तो जान लो कि यहाँ आदमी कि खैर नहीं. हर इन्किलाब के बाद आदमी समझता है, ...

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